Dara Singh {दारा सिंह} Biography in hindi, Dara singh full details

 Dara Singh Biography in Hindi   {दारा सिंह}


Dara Singh Biography


दारा सिंह (पूरा नाम: दीदार सिंह रंधावा, अंग्रेज़ी: दारा सिंह, जन्म: 19 नवंबर , 1928 पंजाब, निधन: 12 जुलाई 2012 मुंबई) अपने समय के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान रहे हैं। उन्होंने पूर्व विश्व चैंपियन जॉर्ज गार्डियनका को हराकर 1959  में राष्ट्रमंडल की विश्व चैम्पियनशिप जीती। 1968 में, वह फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन बने, अमेरिकी विश्व विजेता लाउ थेज़ को हराया। उन्होंने पचपन वर्ष की आयु तक कुश्ती की और पाँच सौ में से किसी भी मैच में हार नहीं देखी। 1983 में, उन्होंने सम्मानपूर्वक अपने जीवन का अंतिम मैच जीतने के बाद कुश्ती से संन्यास ले लिया।

उन्नीस साठ के दशक में, उनकी फ्रीस्टाइल कुश्ती भारत पर हावी थी। उन्होंने बाद में अपने समय की प्रसिद्ध अभिनेत्री मुमताज के साथ हिंदी स्टंट फिल्मों में प्रवेश किया। कई फिल्मों में अभिनय के अलावा, दारा सिंह ने निर्देशन और लेखन भी किया। उन्होंने टीवी धारावाहिक रामायण में हनुमान के प्रदर्शन के साथ अपार लोकप्रियता हासिल की। उन्होंने अपनी आत्मकथा मूल रूप से पंजाबी में लिखी थी जो 1993 में हिंदी में भी प्रकाशित हुई थी। उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने राज्यसभा के सदस्य के रूप में नामित किया था। वे अगस्त 2003 से अगस्त 2009 तक छह पूर्ण वर्षों के लिए राज्य सभा के सदस्य रहे।

उन्हें 7 जुलाई 2012 को दिल का दौरा पड़ने के बाद कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल मुंबई में भर्ती कराया गया था, लेकिन उनके मुंबई स्थित आवास पर वापस लाया गया, जहाँ उन्हें पाँच दिनों तक कोई फायदा नहीं हुआ, जहाँ उन्होंने 12 जुलाई 2012 को सुबह 7.30 बजे दम तोड़ दिया।

व्यक्तिगत जीवन:-

दारा सिंह रंधावा का जन्म 19 नवंबर 1928 को अमृतसर (पंजाब) के ग्राम धरमुचक में बलवंत कौर और सूरत सिंह रंधावा के घर हुआ था। कम उम्र में, घरवालों ने उनकी सहमति के बिना उनकी उम्र में एक बहुत बड़ी लड़की से शादी कर ली। माँ ने उन्हें मक्खन और मक्खन में सौ बादाम पागल के साथ खिलाना शुरू किया और ऊपर से भैंस का दूध पिलाया ताकि हॉग जल्दी जवान हो जाए। परिणामस्वरूप, सत्रह वर्ष की आयु में, दारा सिंह प्रद्युम्न रंधावा नामक एक पुत्र के पिता बन गए। [३] दारा सिंह का एक छोटा भाई सरदारा सिंह भी था, जिसे रंधावा के नाम से जाना जाता था। दारा सिंह और रंधावा - दोनों ने कुश्ती शुरू की और धीरे-धीरे गाँव के दंगों से शहरों तक कुश्ती की जंग जीतकर अपने गाँव का नाम रौशन किया


दारा सिंह कुश्ती के शहंशाह| Dara Singh Biography in Hindi

आज के समय में कोई भी व्यक्ति ऐसा नही है, जो खेल जगत और बॉलीवुड से अनभिज्ञ हो. ऐसे ही खेल जगत और बॉलीवुड से जुड़े एक महान शख्सियत है, दारा सिंह जी. जिन्होंने खेल जगत के साथ अपने दमदार अभिनय से बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बनाई. वैसे तो देश के प्रसिद्ध रेसलरो में से एक दारा सिंह जी को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है. यह वो इंसान है जिन्होंने देश का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा है.


अपराजय पहलवान दारा सिंह | Dara Singh Ki Kushti

दारा सिंह के छोटे भाई का नाम सरदार सिंह था. दोनों भाई ने साथ में ही पहलवानी शुरू की थी. कुछ समय बाद धीरे-धीरे दोनों भाई ने मिलकर गाँव के दंगलो से निकल कर शहर में आयोजित कुश्तियों में भाग लेकर अपनी जीत को हासिल किया और अपने गाँव का नाम रोशन किया. वे अपने ज़माने के फ्री-स्टायल पहलवान रहे.

1960 के दशक में पुरे भारत में दारा सिंह की फ्री-स्टायल कुश्तियों का बोलबाला रहा है. उन्होंने 1959 में पूर्व विश्व चैम्पियन जार्ज गारडीयांका को पराजित किया और कामनवेल्थ की विश्व चैम्पियनशिप जीती थी.


Dara Singh Jaat ; Jaat Smaaj



दारा सिंह ने 55 की उम्र तक पहलवानी की और 500 मुकाबलों में कभी भी हार का मुँह नही देखा. अपने 36 साल के कुश्ती के करियर में एक भी ऐसा पहलवान नही था, जिसे दारा सिंह जी ने मुकाबला कर के रिंग में धुल न चटाई हो. 1968 में वे अमेरिका के विश्व चैम्पियन लो थेस को पराजीत कर विश्व चैम्पियन बन गये.

1947 में दारा सिंह जी सिंगापुर आ गये. वहां उन्होंने भारतीय फ्रीस्टाइल की कुश्ती में मलेशियाए चैम्पियन को हराया, और कुआलालम्पुर मलेशिया में चैम्पियनशिप जीती. इसके बाद उनका विजय रथ अन्य देशो की और चल पड़ा. एक पेशेवर पहलवान के रूप में सभी देशो में अपनी धाक जमाकर दारा सिंह जी 1952 में भारत लौट आये और भारत का नाम रोशन किया.

1954 में दारा सिंह जी भारतीय कुश्ती के चैम्पियन बने. फिर उनका मुकाबला कुश्ती के दानव कहे जाने वाले किंग-कोंग से हुआ. उस वक्त दारा सिंह का वजन 130 किलो था, जबकि किंग-कोंग का वजन 200 किलो था. यह मैच बड़ा ही रोमांचित था, क्योंकि किंग-कोंग के भारी भरकम शरीर को देख कर दर्शक किंग-कोंग पर ही अपना पैसा लगा रहे थे.

एक समय तो ऐसा आया कि सबको लगा इस बार दारा सिंह तो पराजीत होंगे ही और उन्हें हार का मुँह देखन पड़ेगा. परन्तु दारा सिंह के पहलवानी दाव से उन्होंने किंग-कोंग को अपने शिकंजे में कस लिया और मारते-मारते रिंग के बाहर निकाल दिया. इस तरह उन्होंने फिर से कुश्ती में विजय हासिल की. 1983 में उन्होंने अपने जीवन के अंतिम मुक़ाबले को खेल कर जीता और भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से ख़िताब हासिल कर रिकॉर्ड अपने नाम बरक़रार रखते हुए कुश्ती से सम्मानपूर्वक संन्यास ले लिया.


बॉलीवुड में प्रवेश/ फिल्मों में अभिनय/ फिल्मों की तरफ रूख़ | Dara Singh Initial Stage of Bollywood

1952 में दारा सिंह को राज्य सभा का सदस्य घोषित किया. दारा सिंह जी ऐसे पहले व्यक्ति थे, जो कि खेल जगत से सम्बन्ध रखते थे. इसके बाद दारा सिंह जी ने फिल्मों की तरफ अपना रुख़ किया और फिल्मों में उन्होंने निर्माता निर्देशक और कलाकार के तोर पर अपना परचम लहराया.

दारा सिंह जी ने पहली फिल्म 1952 में ‘दिलीप कुमार’ और ‘मधुबाला जी’ के साथ ‘संगदिल’ की उसके बाद 1954 में ‘पहली झलक’ जिसमे उन्होंने अपना ही किरदार दारा सिंह का निभाया था. 1962 में उन्होंने ‘किंग- कोंग’ में किंग-कोंग का किरदार निभाया था.


उनकी कुछ प्रमुख फिल्में | Dara Singh Films

फौलाद’ , ‘रुस्तमे बग़दाद’ , ‘रुस्तम-ए-हिन्द’ , ‘दारा सिंह (द आयरन मेन)’ , ‘सिकंदर-ए-आज़म’ , ‘मेरा नाम जोकर’ , ‘तुलसी विवाह’ , ‘धरम-करम’ , ‘कर्मा’ , ‘भक्ति में शक्ति’ , ‘इन्तकाम मैं लूँगा’ , ‘मर्द’ जैसी कई सारी फिल्मों में अपना बेहतर अभिनय दिखाया. दूरदर्शन के धारावाहिक ‘रामायण’ में उन्होंने हनुमान जी का रोल बहुत ही बख़ुबी निभाया. ‘महाभारत’ में भी उन्होंने हनुमान जी का रोल निभाया था. जिसे दर्शको ने काफी पसंद किया, और हनुमान के अभिनय से उन्हें अपार लोकप्रियता मिली. 2006 में ‘दिल अपना पंजाब’ और 2008 में ‘जब वी मेट’ जैसी फिल्मों में अपना योगदान दिया. 2012 में ‘अता पता लापता’ उनके जीवन की आखिरी फिल्म थी.

दारा सिंह की मृत्यु | Death of Dara Singh

7 जुलाई 2012 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा. फिर उन्हें कोकिलाबेन धीरुभाई अम्बानी अस्पताल में भर्ती कराया गया, पर उन्हें 5 दिनों में भी कोई आराम नही हुआ, तो उन्हें उनके मुंबई निवास स्थान पर लाया गया जहाँ सुबह 07:30 बजे दारा सिंघ जी ने अपनी आखरी सांस ली और इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उन्होंने अपनी आत्म कथा पंजाबी में लिखी थी, जो 1993 में हिंदी में भी प्रकाशित हुई. दारा सिंह जी के योगदान को भारतीय खेल जगत और भारतीय फिल्म जगत हमेशा याद रखेगा.

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